बवासीर एक आम समस्या है और यह महिला एवं पुरुष दोनों को होता है। बवासीर होने का सबसे मुख्य कारण ख़राब जीवन शैली कहा जाता है पर कई बार यह समस्या अनुवान्सिक भी होती है। आज हम बवासीर के मस्से सुखाने के 10+ उपाय और बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय रामबाण इलाज के बारे में बात करने वाले है।
बवासीर को गुदा में होने वाला रोग माना जाता है, जबकि चिकित्सीय दृष्टि से बवासीर का स्थान गुद वलियो को बताया गया है। जिसमे पायी जाने वाली शिराओ में विकृति आ जाने पर, गुद वलि अंकुरों की भाँती फूल आया करती है। जिन्हे बवासीर के लक्षण कहा जाता है। जिसमे गुदा में दर्द, स्राव और जलन आदि की समस्या देखी जाती है। जिससे रोगी दैनिक गतिविधियों के सम्पादन में कष्ट का अनुभव करने लगता है। जिसके लिए बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय अपनाये जाते है।
हमारे शरीर में पायी जाने वाली गुदवलि, गुदौष्ठ और मलाशय के बीच गुद नलिका में स्थित होती है। जिसमे पायी जाने वाली पेशीगत संरचनाओं को ही वलियो के नाम से जाना जाता है।
तुरंत पढ़ें :- बवासीर के मस्से सुखाने के 10+ उपाय |
बवासीर क्या होता है?
शरीर संरचना के अनुसार गुद नलिका का स्थान, मलाशय और गुदा के बीच है। जोकि नलिका के जैसा होता है। जिसमे शंखाकार काले रंग ली हुई तीन वलिया, चार अंगुल की दूरी में एक के ऊपर एक पायी जाती है। जिसमे पायी जाने वाली शिरा रक्तवाहियो में, रक्त प्रसवित होने से मांस के मस्से निकल आया करते है। जिन्हे बवासीर के मस्से कहा जाता है। इनसे हर समय रक्तस्राव हुआ करता है। जिसको दूर करने के लिए बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय किये जाते है।
जिस प्रकार गुद नलिका, मलाशय और गुदौष्ठ के बीच पायी जाती है। उसी प्रकार प्रवाहनी और विसर्जनी वलि के मध्य, संवरणी वलि पायी जाती है। इन तीनो बलियो में रक्त शिराए हुआ करती है। जिसमे विकृति आने पर इन्ही रक्त शिराओ से, बवासीर के मस्से निकला करते है। जिसके कारण जिस वलि में विकृति आती है। उसी स्थान पर बवासीर के मस्से निकलते है।
इस कारण बवासीर के कुछ मस्से गुदा के बाहर, मध्य और भीतर में देखे जाते है। इतने पर भी यह मस्से जिस प्रकार के दोष से प्रभावित होते है। उसी दोष से समाहित लक्षणों को प्रदर्शित करते है। अर्थात वात विकारो से आलिप्त होने से वातज बवासीर को जन्म देते है। पित्त दोष से पित्तज और कफ दोष से कफज बवासीर का आधान करते है। वही दोषो में अनुबंध होने पर अनुबन्धी बवासीर को भी पैदा करते है। जिससे बवासीर में, जलन युक्त अथवा बिना जलन के भी रक्तस्राव हुआ करता है।
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बवासीर के प्रकार
आयुर्वेदगत प्रकार और विकार के आधार पर, बवासीर को निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है –
1. जन्मज बवासीर
यह स्वाभिक रूप से भूख, प्यास आदि की तरह होने वाली बवासीर है। जो माता – पिता के स्वाभाविक दोषो से उनके सन्तानो को प्राप्त होती है। जिसके निवारण का कोई चिकित्सीय प्रावधान नहीं प्राप्त है। इस प्रकार की बवासीर भी अजन्मज बवासीर की भाँती, विभिन्न आकार और प्रकार लिए हुई होती है।
2. अजन्मज बवासीर
यह अस्वाभाविक बवासीर है। जिसको जन्मोत्तर कालज बवासीर के नाम से भी जाना जाता है। यह विरुद्ध आचरण और व्यवहार के कारण प्राप्त होने वाली बवासीर है। जिसके उपचार का विधान आयुर्वेदादी शास्त्रों ने किया है। इसको ही आयुर्वेद ने छः दोषो से लिप्त माना है। जिससे इनकी संख्या भी छः बतलाई गई है। जिनको समग्रता से दो में समाहित किया जा सकता है।
– मस्से वाली बवासीर
यह ऐसी बवासीर होती है। जिसमे किसी प्रकार का कोई स्राव नहीं पाया जाता। लेकिन अनेक आकार और रंग लिए हुए, गुदा द्वार में बड़े – बड़े मस्से पाए जाते है। जिसमे कुछ मुलायम, खुरदरे और काले रंग के भीषण चुभन करने वाले होते है। जबकि कुछ आकार में बहुत बड़े, चिकने, मोठे और सफ़ेद रंग के होते है। जो गुदा द्वार को पूरी तरह से ढक लेते है। जिसके कारण इन्हे एक्सटर्नल पाइल्स भी कहा जाता है।
– खूनी बवासीर
यह गुदा नली के मध्य और उसके ऊपर पायी जाने वाली, वलि में होने वाली बवासीर है। जिसके मस्से आकार में बहुत छोटे, लेकिन भीषण जलन करने वाले होते है। जिसके कारण इसको इंटरनल पाइल्स के नाम से भी जाना जाता है। इस बवासीर के मस्से पिलपिले, फटे हुए एवं गंध देने वाले होते है। लेकिन इसकी एक विशेषता है कि इसमें रक्त मिला हुआ स्राव हुआ करता है। जिसको निर्मूल करने में बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय मदद करते है।
बवासीर कैसे होती है | बवासीर होने का मुख्य कारण
जन्म के बाद होने वाली बवासीर का मुख्य कारन, आहार – विहार की विसंगति को माना गया है। जिसमे दिनचर्या और ऋतुचर्या को भी सम्मिलित कर लिया जाय, तो यह हमारे दैनिक गतिविधियों की गड़बड़ी से होने वाली बीमारी है। जैसे –
- मात्रा से अधिक भोजन कर लेना
- बहुत तीखा, मसाले युक्त और खूब तला – भुना खाना खाना
- अधिक मात्रा में खट्टे पदार्थो का सेवन करना, जैसे – इमली आदि।
- विरुद्ध और विपरीत आहार करना। जैसे – ठंडी और गर्म तासीर का भोजन एक साथ करना।
- फाइबर के बिना, सूखा और चिकना भोजन करना
- फाइबर की न्यूनता रखने वाले पदार्थो का भक्षण करना
- देर से पचने वाला और गरिष्ठ भोजन करना
- चीनी का खूब प्रयोग करना
- अम्लीय नमक को भोजन के रूप में खाने से
- अशुद्ध तेल एवं घी का प्रयोग करना
- क्षमता से अधिक भार उठाना
- अधिक धूप में काम करना
- रसोई आदि में अग्नि की आंच लगने से
- नशीले पदार्थो का सेवन करते करना
- रात्रि जागरण करना
- दिन में सोते रहना
- उपयुक्त परिश्रम न करना
- अधिक और अनुचित विधा से स्त्री प्रसंग करना
- ठन्डे पानी से शैच करना , आदि।
उपरोक्त सभी हमने बवासीर होने का मुख्य कारण बताये है क्योंकि बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय जानने से पहले यह आवस्यक है की हम सब जान लें बवासीर होने के मुख्य कारण क्या है। चलिए आगे यह भी थोडा जान लेते है की बवासीर होने के लक्षण क्या होते है.
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बवासीर होने के लक्षण
बवासीर गुदा से सम्बंधित रोग है। जिसके कारण इसमें गुदा और इससे जुड़े हुए अंगो के, विकारग्रस्त होने से लक्षण पैदा होते है। जो कि देहगत दोषो की अधिकता के कारण दिखाई देते है। स्राव का श्रावण करने वाली बवासीर में, पित्त दोष प्रधान रूप से रहता है। जिसके कारण इसमें निम्नलिखित लक्षण देखे जाते है –
- मलत्याग के समय गुदा में भीषण दर्द होना
- गुदा में जलन होना। जिसका मलत्याग के समय बढ़ जाना और घंटों बने रहना।
- शौच के समय गुदा द्वार पर मस्से दिखाई देना
- इन मस्सो से लगातार खून और मवाज निकलना
- गुदाद्वार से दर्द और बिना दर्द के रक्तस्राव होना
- आसानी से मलत्याग न होना
- मल पीला, झागदार और पतला होना
- मलत्याद के समय पेट में गुड़गुड़ाहट होना
- मल में आंव निकलना
- मल में तीव्र गंध होना
- गुदाद्वार में सूजन और दर्द होना
- गुदा में घाव हो जाना
- जल्दी – जल्दी मल – मूत्र आदि का वेग आना
- पैर, पेट और कुक्षि में दर्द होना
- पाचन शक्ति का क्षीण हो जाना
- कुछ खाने का मन न करना
- शरीर में कमजोरी आती जाना
- छटपटी और बेचैनी का बने रहना, आदि।
बवासीर का इलाज आयुर्वेद के अनुसार कैसे हो सकता है
आयुर्वेद ने स्वभावगत दोषो की वैषम्यता को रोग कहा है। जिसका निवारण करने की एकमात्र विधा, रोग कारण का निषेध करना है। जिसके लिए औषधियों और आहार – विहार, दिनचर्या आदि की सैद्धांतिक मर्यादा का दृढ़ता से पालन करना है। तब जाकर अतिव्याप्ति और अव्याप्ति नामक, दोष द्वय से छुटकारा मिलता है। जिससे रोग निदान का मार्ग प्रशस्त होता है।
शरीरगत स्वाभाविक दोषो के निवारण के उपायों को ही, दोष अथवा रोग चिकित्सा कहा गया है जिसके कारण आयुर्वेद को दोष प्रधान चिकित्सा कहा गया है। जिसका आलंबन लेते ही रोग ही नहीं, महारोग भी शांत होने लगते है। अर्थात शरीरगत वैषम्यता समता को प्राप्त होती है।
आधुनिक चिकित्सा के जानकार, बवासीर जैसे रोगो को जीवन शैली से जुड़ा हुआ रोग मानते है। जिसमे आहार – दिनचर्या गत विषमता को रोग का मुख्य हेतु मानते है। जिसमे सुधार लाये बिना बवासीर नामक गुदा रोगो से नहीं बचा जा सकता। रोग से छुटकारा पाने की तो दूर की बात है। इस आधार पर यह भी एक तरह से आयुर्वेद के सिद्धांत का आंशिक रूप ही है।
परन्तु स्त्री और पुरुष के शरीर में, कुछ विशेष अंग पाए जाते है। जिसकी अपनी एक अलग विशेषता और प्रयोजन है। जिसके कारण महिला और पुरुष बवासीर के लक्षण में कुछ अंतर है। जिसके चलते स्त्री और पुरुष में बवासीर होने के कारणों में भेद है। लेकिन रोग के होने का स्थान समान होने के कारण, रोग के लक्षणों में समानता है।
जिन बवासीर के मस्सों से स्राव स्रावित होता है। उनमे प्रायः पित्त दोष का ही दर्शन होता है। फिर चाहे वह मुख्य रूप से हो या गौड़ रूप से हो। जिसके कारण कोई बवासीर एक दोष के लक्षणों से युक्त होती है, तो कोई दो और तीन दोष के लक्षणों से।
बवासीर का रामबाण इलाज | जड़ से बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय
इन्ही विविधताओं से बवासीर के होने का स्थान एक होने पर भी, बवासीर के मस्सों, आकार और उनकी सघनता में भेद आ जाता है। इसलिए कुछ मस्से मोठे, चिकने, कड़े और बहुत बड़े होने पर बिना रक्त के ही रक्तस्राव किया करते है।
कुछ बवासीर के मस्से आकार में छोटे, पिचपिचे, फटे हुए भी भीषण जलन कारी दर्द पैदा करते है। जैसे किसी ने लाल मिर्च का पाउडर छिड़क दिया हो।
वही कुछ ऐसे मस्से भी होते जो मध्यम आकार लिए खुरदरे, कड़े मल को सूखा देने वाले और भीषण चुभन का दर्द पैदा करते है। जिससे कांच के छोटे – छोटे टुकड़े अथवा सुई चुभा देने जैसे दर्द प्रकट करते है। जिसमे कठिनाई तब अधिक बढ़ जाती है। जब यह एक से अधिक दोषो से मिल जाया करते है। जिससे इनके लक्षण और जीर्णता दोनों में अंतर के साथ, इनके नाम भी अंतर आ जाता है। जिससे बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय में भी भेद देखा जाता है।
एकल दोषज खूनी बवासीर
यह ऐसी स्रावी बवासीर है। जिसमे केवल पित्त दोष के ही लक्षण दिखाई पड़ते है। जिससे इनके उपद्रव बहुत तीव्र होने पर भी, आसानी से पहचाने जा सकते है। इस कारण इनका शीघ्र और सटीक उपचार हो जाता है। इसलिए इनको सर्वथा साध्य स्रावी बवासीर कहा गया है।
द्वन्दज या द्विदोषज खूनी बवासीर
यह दो दोषो से मिलकर स्राव पैदा करने वाली बवासीर है। जिसके कारण इसे द्विदोषानुबन्धी बवासीर भी कहा जाता है। जिसमे पित्त दोषो के साथ, वात और कफ दोषो का अनुबंध होता है। जिसके कारण इसमें पित्त के साथ वात अथवा कफ दोषों, के प्रवृत्ति होती देखी जाती है। जिसके कारण इसको कष्ट साध्य खूनी बवासीर भी कहा जाता है। जो दो प्रकार की होती है –
– वातानुबन्धी खूनी बवासीर
जब पित्त दोष के साथ वात दोष का अनुबंध हो जाता है। तब वातानुबन्धी खूनी बवासीर के लक्षण दिखाई पड़ते है। यह बहुत ही कष्टदायी बवासीर है जिसमे जलन और चुभन के साथ, पेट में अपान वायु की प्रतिकूलता को जन्म देते है जिसके कारण इसके मस्से काले – काले, जलन और चुभनकारी होते है।
इसके साथ न रोगी से बैठा जाता है और टहला ही जाता है। इन मस्सों से निकलने वाला खून काला – काला गठ्ठेदार होता है। जिसमे बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय अत्यंत लाभकारी है।
– कफानुबन्धी खूनी बवासीर
यह बवासीर कफ और पित्त दोष के अनुबंध से होती है। जिसके कारण इसमें चुभन का दर्द लगभग नहीं होता। लेकिन इनके मस्सों में भीषण जलन होती है। इस तरह की बवासीर के मस्से इतने बड़े होते है कि गुदा द्वार को ही बंद कर देते है। जिसके कारण मल का वेग आने पर भी मल, बाहर नहीं निकल पाता। जिससे पेट में मल सूखने लगता है।
ऐसा होने पर मल सूखकर, कडा हो जाता है। जिसको निकालने के लिए बहुत काँखना पड़ता है। तब जाकर मल द्वार पर घाव करता हुआ, मल बाहर निकलता है। जिसमे प्रायः किसी तरह का दर्द नहीं होता। फिर भी मल त्याग के दौरान अथवा बाद, बिना दर्द के अथवा थोड़ी जलन करता हुआ खून टपकता रहता है।
सन्निपातिक या त्रिदोषज खूनी बवासीर :
यह पित्त, वात और कफ दोषो के अनुबंध से होने वाली बवासीर है। जिसके कारण इसे त्रिदोषज खूनी बवासीर का दर्जा प्राप्त है। इसमें तीनो प्रकार के दोषो से, मिलते – जुलते लक्षण दिखाई पड़ते है। जिससे इसमें भीषण सुई चुभाने वाला दर्द, मिर्च का चूर्ण छिड़क देने वाली जलन के साथ नीचे की मोहणी वाले बवासीर के अंकुर पाए जाते है। जिसके कारण रोगी ऐसे दर्द का अनुभव करता है। जो अपनी वाणी से बया नहीं कर पाता।
यह बहुत ही जिद्दी और शरीर पर अपना अधिकार जमा देने वाली बवासीर है। जिसके चपेट में आने वाले विरले लोग ही बच पाते है। जिसके कारण इसको आयुर्वेदादी शास्त्रों में असाध्य बवासीर कहा गया है। किन्तु अब चिकित्सा की सुविधा बढ़ने से, बवासीर को असाध्य नहीं माना जाता।
बवासीर के मस्से सुखाने के आयुर्वेदिक उपाय
बवासीर के मस्सों को सुखाने के लिए आयुर्वेद में, बहुत से उपाय बताये गए है। जिनका आलंबन लेने से बवासीर के मस्से सूखने लगते है। आयुर्वेद में बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय निम्न बताये गए है –
- कुटज खूनी बवासीर की सर्व श्रेष्ठ औषधि है। जिसका सेवन करने से खूनी बवासीर जड़ से समाप्त हो जाती है। जिसके लिए इसको पत्थर पर मठ्ठे के साथ पीसकर, पीना बहुत ही लाभ दाई है। यह बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय में सर्वाधिक विश्सनीय उपाय है।
- नागकेशर चूर्ण का मक्खन और चीनी के साथ सेवन करने से, खूनी बवासीर के मस्से नष्ट हो जाया करते है।
- कमल के पत्तों को बकरी के दूध में पत्थर पर पीसकर, थोड़ी सी चीनी मिलाकर पीने से खूनी बवासीर गारंटी से ठीक हो जाया करती है। इसलिए इसको बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय की उत्तम दवा कहा गया है।
- बेल के फल के गूदे को पुरइनपाढी के चूर्ण के साथ लेने से, खूनी बवासीर की जलन और दर्द खत्म होने लगते है।
पुरुष बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय घरेलु तरीके
बवासीर की समस्या महिला हो या पुरुष दोनों का ही होता है और दोनों में बीमारी की सामान्य लगभग समान ही होती है लेकिन कुछ नियमों में महिला अथवा पुरुष का शरीर विभिन्न होने के कारण दोनों के लिए उपचार की विधि भी अलग होती है।
पुरुष बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय जिसको सामान्य दिनों में रोजाना अपने घरों पर अपना सकते हैं वह निम्नलिखित है:
1. हल्का गर्म पानी से स्नान करना
बवासीर के मस्से निकल आने पर कभी-कभी असहनीय दर्द महसूस होता है कुछ ऐसे भी बवासीर होते हैं जिसके मास गुदा द्वार से बाहर भी लटकने लगते हैं जिसके कारण मल त्याग करते वक्त भी दर्द का बहुत अधिक एहसास होता है।
बवासीर के मस्से से होने वाले असहनीय दर्द से बचने के लिए आप हल्का गर्म पानी से भरा हुआ टब का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसमें बैठकर बवासीर के मस्सों की सिकाई करने से सूजन में और दर्द में बहुत राहत मिलती है। साधन कम होने पर गर्म पानी से स्नान करने से अथवा हल्का गर्म पानी से गोद द्वारा को धोने से भी जलन और दर्द का एहसास कम हो जाता है और बवासीर का मस्सा सिकुड़ने लगता है।
2. मस्से पर बर्फ के पैक की सिकाई
बवासीर के मस्से पर जलन और दर्द की समस्या से राहत पानी के लिए छोटे-छोटे बर्फ के टुकड़े या बर्फ के पाक से सिकाई करना भी बहुत लाभदायक साबित होता है।
बवासीर के मस्सों पर ठंडा बर्फ की सिकाई करने से मस्सा में उठने वाले जलन दर्द और सूजन की समस्या में सुधार आती है और मस्सा का सूजन कम होने लगता है।
3. नारियल का तेल उपयोग करना
बवासीर के मस्सों पर खुजली होना आम बात है लेकिन बहुत अधिक खुजली होने पर कई बार व्यक्ति इस कदर मुझे को खुजा लेता है जिसके कारण अचानक से असहनीय दर्द का एहसास होता है और कई बार खून भी निकलने लगता है। बवासीर के मस्सों पर रोजाना नारियल तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
नारियल का तेल प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला बॉडी मॉइश्चराइजर है जिसको बवासीर के मस्सों पर लगाने से उसे पर होने वाली खुजली और जलन में काफी राहत देखने को मिलती है।
4. एलो वेरा गेल का इस्तेमाल
एलोवेरा में एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं यह एक प्राकृतिक पौधा है लेकिन कई तरह के गुना से भरपूर होता है। बवासीर के मस्सों में उठने वाले दर्द जलन और सूजन को कम करने के लिए एलोवेरा जेल का भी उपयोग किया जा सकता है यह भी एक प्राकृतिक मॉइश्चराइजर के रूप में काम आ सकता है।
एलोवेरा जेल को बवासीर के मस्सों पर लगाने से ठंडक और राहत मिलती है इसके उपयोग से दर्द और सूजन में भी काफी राहत देखने को मिलती है।
5. फाइबर से भरपूर आहार का सेवन
बवासीर के मस्सों में दर्द होने का एक बहुत बड़ा कारण है आपके शरीर से सुखा और सख्त माल का त्याग होना। आपके शरीर का सूखा मल गुदा द्वारा से बाहर निकलते वक्त बवासीर के मस्सों से खिसकते हुए निकलता है जिसके कारण व्यक्ति को बहुत दर्द का अनुभव होता है। कई बार सूखा मल त्याग करते वक्त वासीर के मस्से छिल जाते हैं जिसके कारण बहुत अधिक खून भी बहने लगता है।
हमेशा फाइबर से भरपूर आहार का सेवन करने से माल में फाइबर की मात्रा बनी रहती है जिसके कारण बहुत ही सरलता पूर्वक और जिला माल का त्याग होता है जिससे बवासीर के मस्सों को किसी भी तरह का कोई हानि नहीं पहुंचता जिसके कारण बवासीर में और वृद्धि होने का खतरा भी कम हो जाता है और खून निकालना और दर्द होने की समस्या भी कम हो जाती है।
निष्कर्ष :
इस आर्टिकल में हमने बवासीर के मस्से सुखाने के 10+ उपाय और बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय रामबाण इलाज के बारे में बात की है।
शरीर गत पाए जाने वाले त्रिदोषों में संतुलन बनाये रखना ही, चिर काल तक स्वस्थ बने रहने का अचूक उपाय है। परन्तु आज का युग मशीनी युग है। जिसमे उठने, बैठने, खाने और सोने जैसे क्रियाओ का सम्पादन भी मशीनों द्वारा हो रहा है। जिसका दुष्प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर देखा जा रहा है। फिर भी जितना हो सके, रोग से बचने का प्रयास करना चाहिए। फिर भी यातायात आदि की सुविधा बढ़ने से, आहार, निद्रा ( दिनचर्या ) आदि में विसंगति हो जाती है।
जिसके निवारण के लिए बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय अपनाना आवश्यक है। जिसमे आयुर्वेद गत उपाय बहुत ही लाभ करने वाले है। जिसके लिए लगातार उपयुक्त प्रयास करते रहना चाहिए.